शैवाल शब्द का गठन | Algae word formation

 शैवाल(Algae-एल्गी) शब्द का गठन सर्वप्रथम व् प्रयोग लिनियस (Linnaeus  1753 ) में किया था ,जिसका शाब्दिक अर्थ है- समुद्री खरपतवार |

इनमें कुछ विशालकाय  जैसे-केल्प

शैवाल का चित्र 

 

picture of algae



शैवाल का अध्ययन 

study of algae :

शैवालों का अध्ययन को शैवाल विज्ञान (Algology ) या फाइकोलोजी(phycology ) कहते है |

एफ़.ई.फ्रिश्च F.E.Fritsch 1935,1945 ) को  विश्व  शैवाल विज्ञान का जनक तथा एम. ओ.पी. आयंगर (M.O.P. Iyengar 1920,1944 )  को भारतीय शैवाल विज्ञान का जनक का सम्मान दिया जाता है |


शैवालों  के सामान्य लक्षण|General Characteristics of Algae        

1.शैवाल मुख्यतः जलीय आवास में पायी जाती है,ये अलवणीय,लवणीय, व समुंद्री में,बर्फ में तथा नम स्थलीय स्थानों में मिलती है 
2.इनका पादप शरीरं थैलस (Thallus-सुकाय ) होता है, जो अधिकांश सदस्यो में युग्मकोदभिद पीढ़ी (Gametophytic generation ) को निरुपित करता है |
3.अविभेदित पादप शरीर जिसमें मूल,स्तंभ व पर्णों का विभेदन नही होता है ,

थैलस कहलाता है |थैलस एककोशिक या बहुकोशिक  हो सकता है 
4.शैवालो के पादप शरीर में उतक विभेदन तथा संवहन तंत्र नहीं पाया जाता है |
5.अधिकांश शैवालों की कोशिका भित्ति सैलूलोज व् पेक्टिन की बनी होती है | भूरी शैवालों  (फिओफाइसी ) की भित्ति में एल्जीनिक व फ्युसिनिक अम्ल तथा लाल शैवाल (रोडोफाइसी ) की भित्ति में पोलिसल्फेट एस्टर्स अतिरिक्त रूप  में पाये जाते है |
6.सभी शैवाले ससीमकेंद्रकी होती है (अपवाद-नील हरित शैवाल असीमकेंद्रकी (prokarytic) होती है |लेकिन वर्तमान में इस वर्ग को जीवाणुओं के साथ सायनोबैक्टीरिया के रूप में रखा गया है |

शैवालों का वर्गीकरण |Classification of algae

डिविजन

सामान्य नाम

प्रमुख वर्णक

संचित भोजन

कोशिका भित्ति

फ्लेजिला की संख्या तथा उनकी निवेशन की स्थिति

आवास

क्लोरोफाइसी

  हरे शैवाल

क्लोरोफिल  a,b

स्टार्च

सेल्युलोज

2-8 समान.शीर्ष

अलवणजल,

लवणीय जल,

खारा जल

फियोफाइसी

 भूरे शैवाल

क्लोरोफिल  a,c फ्युकोजैथिन

मैनीटोल लैमिनेरिन

सेल्युलोज तथा एल्जिन

2 असमान ,समानांतर

अलवणजल

(बहुत कम ), लवणीय जल,

खारा जल

रोडोफाइसी

 लाल शैवाल

क्लोरोफिल  a,d फाइकोऐरिथ्रिन

फ्लोरिडीओन स्टार्च

सेल्युलोज

अनुपस्थित

अलवणजल

कुछ , खारा जल,लवण जल (अधिकांश )





8. लाल शैवालों (रोडोफाइसी ) व सायनोबैक्टीरिया के अलावा अन्य सभी शैवालों में कशाभिकीय संरचनाओं बनती है |
9. शैवालों में जनन कायिक (Vegetative ),अलैंगिक(Asexual ),तथा लैंगिक (Sexual ) विधियों से होता है |

10.कायिक जनन बहुगुणन की सामान्य सरंचना व तीव्र विधि है,यह कई विधियों से हो सकता है |

    

  खंडन  , विखंडन ,हार्मोगोंन ,अपस्थानिक शाखाओं द्वारा , कंदों द्वारा  ,      मुकुलन द्वारा (By budding )

11. अलैगिक जनन अनुकूल परिस्थितियों में काफी व्यापक स्तर पर होता है | 

इसके अंतर्गत शैवालों ने चल व् अचल (Motile and Non -motile ) प्रकार के बीजाणु बनते हैं | 
जैसे-चलबीजाणु (Zoospores ),अचल बीजाणु(Aplanospores ) ,जनकाभबीजाणु(Autospores ),सुप्तबीजाणु(Hypnospores), चतुष्कबीजाणु(Tetraspores ),निश्चेष्टबीजाणु(akinetes ),प्रबलबीजाणु(Auxospores), तथा श्लेष्मा अवस्था(By palmella Stage )

12.लैंगिक जनन प्राय: प्रतिकूल  परिस्थितियों में तीन विधियों से समयुग्मक (Isogamous ),असमयुग्मक(Anisogamous ),तथा विषमयुग्मक(Oogamous ) |
13.लैंगिक जनन सदैव एककोशिक होते है |कुछ सदस्यों में जब बहुकोशिक होते है ,तो सभी कोशिकाए जननक्षम होती है |
14.नर जननांग को पुंधानी (Antheridium) तथा मादा जननांग को अंडधानी (Oogonium ) कहते है |

15. निषेचन के उपरांत बने  िद्वगुणीत युग्मनज (Zygote ) से भ्रूण नही बनते है |

16. जीवनचक्र में  अस्पष्ट पीढ़ी एकांतरण (Alternation of generation ) पाया जाता है | मुख्य पादप शरीर अगुणित युग्मकोदभिद पीढ़ी को निरुपित करता है ,जो दीर्घजीवी व प्रमुख पीढ़ी होती है | बीजाणुदभिद पीढ़ी (Sporophytics generation ) प्राय: द्विगुणित युग्मनज (Zygote ) द्वारा निरुपित करता है,जो अल्पजीवी व अप्रभावी पीढ़ी है |

Haplontics life cycle of Algae | अगुणित शैवाल का जीवन चक्र 


चित्र :-Haplontics life cycle of Algae | 
अगुणित शैवाल का जीवन चक्र 

शैवालों का वर्गीकरण | Classification of Algae 

शैवालों का प्रारंभिक वर्गीकरण में लिनियस ने क्रिप्टोगेमिया (Cryptogamia-अपुष्पीपादप ) में तथा बाद में ईकलर (Eichler ,1886) ने इनको थैलोफाइटा (Thallophyta ) प्रभाग में रखा |
एल्गी (algae )  शब्द का सर्वप्रथम वर्गीकरण   लिनियस ने 1753ई. में किया ,किन्तु इस समूह के पादप का सही वर्गीकरण ए. एल. डी .जस्सू (1789 ई.) में की |
शैवालो का सर्वाधिक मान्य एवं विस्तृत वर्गीकरण ब्रिटिश शैवालविज्ञानी एफ़.ई. फ्रिश्च (F.E. Fritsch ) ने अपनी पुस्तकों -The Structure and Reproduction of the Algae, Vol-1 (1935 ) and Vol-2 (1945 ) में प्रस्तुत किया |

फ्रिश ने शैवालों को उनमें पाये जाने वाले वर्णको (pigments ),कशाभिका (Flagella) तथा संचित भोज्य पदार्थो की प्रकृति के आधार पर निम्नलिखित 11 संवर्गो में विभाजित किया है -

1.क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae ) -हरित शैवाल (green algae )-

मुख्य वर्णक-Chl-a व b ,पीले वर्णक अल्प मात्रा
संचित भोज्य पदार्थ-स्टार्च
उदाहरण-क्लेमाइडोमोनास,वोल्वोक्स,स्पाइरोगोइरा,युलोथ्रिक्स,
कारा

2.जैथोफाइसी (Xanthophyceae ) -पीले-हरे शैवाल (Yellow Green Algae )

मुख्य वर्णक-क्लोरो-a तथा e, रंग -पीला-हरा
संचित भोज्य पदार्थ-तेल
उदाहरण-वोकैरिया,बोटिडीयम

3. क्राइसोफाइसी (Chrysophyceae ) :
मुख्य वर्णक-क्लोरो-a तथा फाइकोक्राइसिन(phycochrycin )
संचित भोज्य पदार्थ-तेल व ल्युकोसिन
उदाहरण-क्रिप्टोफोरा

4. बेसिलेरियोफाइसी (Bacillariophyceae )-डायटम्स(Diatoms )

1.मुख्य वर्णक-क्लोरो-A तथा C ,फ्युकोजैथिन
2.संचित भोज्य पदार्थ-तेल
उदाहरण-पिन्युलेरिया,नेवीकला

5.क्रिप्टोफाइसी (Cryptophyceae ):

मुख्य वर्णक- क्लोरोफिल (A)ए तथा सी (C) अल्फा, बीटा केरोटिन 
संचित भोज्य पदार्थ  तेल होते हैं |
उदाहरण-क्रिप्टोमोनोस, फिओप्लेक्स

6.डाइनोफाइसी  (Dinophyceae ) :

मुख्य वर्णक- क्लोरोफिल -A तथा C,पाइरोल
संचित भोज्य पदार्थ -स्टार्च व वसा होते है |
उदाहरण-डेस्मोकेप्सा,जिम्नोडिनियम

7.क्लोरोमोनेडिनी (Chloromonadineae ) :पौधे चमकीले हरे
मुख्य वर्णक- क्लोरोफिल -A  तथा  जैन्थोफिल
संचित भोज्य पदार्थ -वसा
उदाहरण-वेक्युओलेरिया,ट्रेन्टोनिया

8.युग्लीनिनी (Euglenineae ):-


मुख्य वर्णक- क्लोरोफिल -A  तथा B कैरोटिन व ल्यूटिन
संचित भोज्य पदार्थ - तेल तथा पैरामिलोंन
कोशिका भित्ति का अभाव होता है |
उदाहरण-यूग्लीना,ऐस्टोसिया

9.फिओफाइसी (Phaeophyceae )-भूरी शैवाल (Brown Algae)

मुख्य वर्णक- क्लोरोफिल -A  तथा C,बीटा कैरोटिन तथा फ्युकोजैथिन
संचित भोज्य पदार्थ-लेमिनेरिन व मेनिटोल 
उदाहरण- एक्टोकार्पस,सार्गसम,फ्युक्स

10.रोडोफाइसी (Rodophyceae)-लाल शैवाल

मुख्य वर्णक- क्लोरोफिल -A  तथा D,अल्फा-बीटा कैरोटिन,R-फाइकोइरिथ्रिन तथा अल्प मात्रा में R-फाइकोसायनिन 
संचित भोज्य पदार्थ- फ्लोरिडियन स्टार्च 
उदाहरण-पोलिसाइफोनिया ,बैन्गिया,पोरफाइरा

11.मिक्सोफाइसी (Myxophyceae ) :नील हरित शैवाल (Blue green algae ) या सायनोफाइसी (Cyanophyceae )-
मुख्य वर्णक- क्लोरोफिल -A  तथा C फाइकोसायनिन  तथा C-फाइकोइरिथ्रिन होते है |
संचित भोज्य पदार्थ- साएनोफाइसिन स्टार्च तथा प्रोटीन युक्त होते है |

इन शैवालो का कोशिकीय संगठन प्रोकेरियोटिक प्रकार का होने के कारण आधुनिक वर्गीकरण में इन्हें जीवाणुओं के साथ  सायनोबैक्टीरिया के रूप में रखा गया है |
उदाहरण-ओसिलेटोरिया,नोस्टोक,एनाबिना



शैवालों का आर्थिक महत्व (Economic importance of Algae )

शैवालों के आर्थिक महत्व को लाभदायक व हानिकारक महत्व के रूप  में समझा जा सकता है |

(अ)लाभदायक आर्थिक महत्व
1.भोजन 2.चारा  3. औषधियों 4.औधौगिक उत्पाद (a)एगार-एगार (b) एल्जिनेट (c) आयोडीन (d)कृषि क्षेत्र में  (e) अन्य
 
(ब) हानिकारक आर्थिक महत्व
1. जल उफान या प्रस्फुटन (Water blooms )
2.जीवों की मौत
3.अन्य

शैवालों के लाभदायक आर्थिक महत्व (Beneficial economic importance of algae )

1.भोजन के रूप में (As Food ):
शैवाल कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन व कई अकार्बनिक पोषक के अच्छे स्रोत है |
1.अधिकांश समुंद्री शैवालो जैसे पोरफायरा (लाल शैवाल ),सरगासम,अल्वा,लेमिनेरियाव रोडोमिनिया का उपयोग खाध्य  शैवालो के रूप में करते है ,इनमे विटामिन B तथा C प्रचुर मात्रा में पाये जाते है |
2. कई देशो में समुंद्री शैवालो  सेपकवान बनाये जाते है | 
3.कई स्वच्छजलीय शैवाल जैसे  क्लोरेला व स्पाइरुलिना भी विभिन्न प्रकार से खाये जाते है| 
क्लोरेला से बिस्कुट,केक आदि बनाये जाते है | ये कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन व विटामिनों  का अच्छा स्रोत है |
4.स्पाइरुलिना प्रोटीन का अच्छा स्रोत है ,इनका प्रयोग कुपोषण को सुधारने के लिए शैवाल से निर्मित गोलियों खिलाई जाती है |
2. चारा के रूप  में (As Fodder ) :
1.कई समुंद्री शैवाल विशेष भूरी शैवाल (Phaeophyceae ) जैसे-सरगासम,फ्युक्स,लेमिनेरिया तथा मेक्रोसिस्टीस की जातियों को पालतू पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता है | इन शैवालों से मुर्गियों व सूअरों के लिए पशु आहार बनाया जाता है |
कई शैवाल मछलियों द्वारा खाई जाती है जैसे-माइक्रोस्पोरा,उडोगोनियम आदि |
3.औषधियों के रूप में (As Medicines ) :
1.अधिकांश भूरी शैवालों में आयोडीन उपस्थित होता है अतः इन शैवालों  का उपयोग गलकंड(Goiter) के उपचार से संबंधित सभी औषधियों  में किया जाता है |  2.जिलेडियम शैवालों से उदर रोगों की औषधियां बनाई जाती है |
3.  कारा तथा नाइटेला शैवालें जिस जल में होती है ,वहाँ मच्छर उत्पन्न नहीं होते हैं |
शैवालों के हानिकारक आर्थिक महत्व | Harmful economic importance of algae

4.औधौगिक उत्पाद (Industrial Products ):-

शैवालों से कई प्रकार के बहुउपयोगी उत्पाद तैयार किये जाते है |कुछ प्रमुख उत्पाद निम्न है-

1.ऐगार-ऐगार (Agar-Agar ) :- ऐगार चूर्णी पदार्थ जो जल के साथ जेल (Gel )बनाता है | यह नाइट्रोजन रहित होता है, जो कुछ लाल शैवालों जैसे- जिलेडियम,कोन्ड्रस,ग्रेसिलेरिया तथा जीगार्टीना इत्यादि से प्राप्त किया जाता है |

ऐगार- ऐगार का उपयोग सुक्ष्मजीवों के संवर्धन माध्यम बनाने, बेकरी में ,सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण ,आइसक्रीम निर्माण चमड़ा तथा कपड़ा उद्योग में मांस के डिब्बा  बंदी तथा दांतो के साँचे बनाने में किया जाता है |

2.एल्जीनेट (Alginates ) :- एक गाढा पदार्थ होते हैं, जो तुरंत जेल बना देते हैं इसलिए इनका उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों ,कपड़ों की छपाई, कागज निर्माण आइसक्रीम में, पनीर बनाने में किया जाता है |

एल्जीनेट  का उत्पादन कुछ भूरी शैवालों जैसे लैमिनेरिया ,एस्कोफिल्म किया जाता है |

3. आयोडीन (Iodine ) :-इसका उपयोग औषधियों   व रसायन के रूप में किया जाता है;आयोडीन भूरी शैवालों जैसे लेमिनेरिया ,एक्लोनिया से प्राप्त किया जाता है |

4.अन्य (Other):-1. शैवालों से कई अन्य पदार्थ जैसे केरागिनिन (Carrageenin )-लाल शैवालों कोन्ड्रस से तथा डायटोमाइट-डायएटम से प्राप्त किया जाता है | 

2.केरागिनिन (Carrageenin ) का उपयोग औषधियों व मधकरण ने जबकि डायटोमाइट का उपयोग औधौगिक छनन विधियों में,शक्कर शोधन तथा मधकरण में किया जाता है |

3.कई शैवालों से प्राप्त जिलेटिन का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों व अन्य पदार्थो जैसे क्रीम,शेम्पु ,बूट पोलिश आदि के बनाने में किया जाता है |

5.कृषि में (Agriculture ) :- 1. नील हरित शैवालों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर इसको नाइट्रेट यौगिकों में बदलने की क्षमता होती है, जिससे मृदा की उर्वरता (Fertility ) बनती है | उल्लेखनीय है कि उच्च वर्गीय पादप नाइट्रोजन का यौगिकीकरण नहीं कर सकते हैं  |

2.नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले कुछ नील-हरित शैवाल है जैसे-ऑसिलेटोरिया,एनाबिना,नोस्टोक,ऑलोसिरा तथा साइटोनिया आदि है 

 3.उच्च Ph वाली लवणीय ऊसर मृदा  को कई शैवाले जैसे नोस्टोक,एनाबिना कृषि योग्य बनाते हैं |

4.कुछ समुद्री शैवालों जैसे फ्युक्स,सरगासम आदि का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है |

 5.अन्य कुछ शैवालों जैसे क्लोरेला, सीनेकोकस को अंतरिक्ष उड़ान में शोध कार्य के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है |

6.वाहित मल (Sewage ):-वाहित मल में  शैवालों की ऑक्सीजन की उपलब्धता को बढ़ाती है ,जिससे कई वायवीय (Aerobic) जीवाणु सक्रीय होकर वाहित मल को विघटित कर पर्यावरण स्वच्छता को बढ़ाते है |


1.जल उफान या प्रस्फुटन ( Water Blooms ) :-कई बार छोटे जल स्रोतों में पोषक तत्त्व की अधिक मात्रा होने से कुछ शैवाल जैसी माइक्रोसिस्टिस ,ओसिलेटोरिया आदि की संख्या अत्याधिक हो जाती है ,इनमें से अधिकांश शैवाल मर जाते हैं, जिससे जल दुर्गन्ध मय हो जाता है व ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, इससे जलीय जंतुओं की दम घुटने से मृत्यु हो जाती है ,इस स्थिति को जल उफान के नाम से जाना जाता है  |

2.मछलियों की मृत्यु (Death of Fishes ) :-कुछ शैवाल जैसे एफेनिजोमिनोंन तथा माइक्रोसिस्टिस की कुछ जातियां कई मछलियों जैसे -गैंबुसिया तथा क्रेपिस के लिए विषाक्त होती है ,जिनको खाने से इन मछलियों की मृत्यु हो जाती है |

3.अन्य :- 1. परजीवी शैवाल सिफ्ल्युरोस वाइरिसेंस  चाय -कॉफी व काली मिर्च के पर्णों पर लाल रोली (Red Rust )रोग करती है |

2.गोनिएलेक्सजिम्नोडियम शैवाल मनुष्य के लिए जहरीली होती है |

3.गोनिएलेक्स से स्रावित टेट्राओडॉनटोक्सिन विष जब मछली के साथ मनुष्य में प्रवेश कर जाता है ,तो हाथ पैर सुन्न पड़ना व लकवा आदि के लक्षण उत्पन हो जाते है